Sunday, March 15, 2009

एक दिन अलग सा


सन्वैधानीक चेतावनी : यह रचना काल्पनिक है, कृपया इसे पढ़कर यह न समझें की आपकी ज़िन्दगी सुखद है|
आज मैं सुबह ६ बजे सो कर उठ गया। स्वाभाविकतः मैं ९ बजे उठता हूँ किंतु आज न जाने क्यों मेरी नींद जल्दी खुल गई। शायद यही इस मनहूस दिन की शुरुआत थी।
खैर जल्दी उठ जाना अच्छी आदत है और मैं एक सकारात्मक अभिगम का मानस रखने वाला व्यक्ति हूँ, अतः मुझे अपने जल्दी उठ जाने पर गर्व की ही अनुभूति हुई। मगर समय बिताया कैसे जाए यह एक महत्वपूर्ण सवाल मेरे सामने था। सुबह सुबह थोड़ा सा व्यायाम करना अच्छा माना जाता है इसी वजह से मैं आज अपने व्यायाम करने वाले कपड़े पहन कर व्यायाम शाला की और निकला। मगर शायद विधि को यह मंजूर नही था। व्यायाम शाला के बहार एक कागज चिपकाया गया था की व्यायाम शाला अगले हफ्ते तक के लिए बंध है। ऐसा तो आज तक नही हुआ मगर चलिए कोई बात नही, मैंने दिल को यह कहकर मनाया की शायद आज व्यायाम करने से चोट लगने की संभावना थी। वैसे भी दिन की बेहतरीन शुरुआत तो एक प्याली गरम चाय से ही होती है, और मेरे हाथ की चाय तो माशा अल्लाह दूर दूर तक प्रसिद्द है। चाय बनाते वक्त उठने वाली महक से ही शरीर में उर्जा का संचरण होने लगता है। घर पर आते ही चूल्हे पर बर्तन में पानी गरम होने के लिए रख दिया। अदरक को कूटने वाली ओखली थोडी गन्दी थी मगर स्वच्छता से क्या फरक पड़ता, वैसे भी चाय उबाल कर पी जाती है। थोडी सी इलाइची और लौंग उबले हुए पानी में डाल कर मैंने चाय पत्ती डाल दी। आह! वही महक जिसकी मैंने कल्पना की थी, तन मन को ताज़ा कर देने वाली। वैसे मुझे थोड़ा सा अहतियात बरतने की जरुरत है मगर थोडी सी ज्यादा चीनी वाली चाय किस्मत वालों को नसीब होती है। मैंने चीनी का डिब्बा उठाया मगर....चीनी तो ख़तम हो चुकी है। मुझे अहसास था की दूकान तक जाने की घड़ी समीप है किंतु इस तरह से मुझे मेरी किस्मत धोका देगी ये उम्मीद न थी। मेरी हिम्मत अभी टूटी न थी, उम्मीद ने मेरा साथ छोड़ा ना था। विद्वान् कहते है की चाय कई बीमारियों का मूल है इसलिए शायद अच्छा ही हुआ की मैंने चाय नही पी। विश्वविद्यालय जाने में अभी भी ३ घंटे बाकी थे अतः मैंने सोचा की समय व्यतीत करने के लिए सुबह सुबह थोड़ा चलने के लिए जाया जा सकता है। मैं घर से निकला ही था की बारिश शुरू हो गई। मुझे चिंता तो हो रही थी की प्रकृति मुझसे कोई मजाक कर रही है मगर सारी ज़िन्दगी आशावादी बने रहने वाले आदमी को ऐसे विचार शोभा नही देंगे ये सोच कर मैं घर वापिस चला आया। आकर मैंने ऑरकुट खोला मगर किसी ने मुझे कोई स्क्रैप नही किया था। मेरी पीड़ा असहनीय होती जा रही थी परन्तु सिक्के का दूसरा पहलु देखें तो अब सिर्फ़ २ घंटे ही बिताने थे। नहाने के लिए आपके पास अगर २ घंटे का समय हो और आपके स्नानागार में अगर बाथटब हो तो आप एक राज़सियः स्नान का आनंद उठा सकते हैं। तो मैंने बाथटब को गरम पानी से भर दिया उसमे थोड़ा सा गुलाब जल डाला, कभी कभी प्रयोग करने के लिए लाया गया कीमती द्रवीय साबुन लेकर मैं अन्दर उतर गया। मगर जनाब पानी गरम नही था और ठंडी के मौसम में आप भला ठंडे पानी में स्नान कैसे कर सकते हैं। मैं खुश होने के लिए ये मानता रहा की कीमती साबुन का खर्च कम हुआ। फ़िर इसे भाग्य की सांत्वना कह सकते हैं नाश्ते के वक्त दूध और फल दोनों ही मोजूद थे। इसलिए हर रोज की तरह ही दिन शुरू हो गया है ऐसा विचार तुंरत मेरे मन् में आया और मैं सहज भाव से अपनी मेट्रो रेल की सवारी के लिए चल दिया। बारिश बंध हो चुकी थी; हलाँकि मैं कोई जोखिम उठाने को तैयार नही था इसलिए एक छत्री का अतिरिक्त भार लेकर घर से निकला था। भले ही बस्ते में राखी छत्री आपके कंधे को परेशान करती रहे मगर घर पर आकर जब आप छत्री पर पड़ा हुआ पानी देखते हैं तो इस छोटे से आविष्कार को धन्यवाद देते हैं। भाई ये पानी अगर आपके सर पर गिरता तो शायद आप बीमार हो सकते थे।
अब मैं रेल की प्रतीक्षा कर रहा था मगर आज शायद रेल असामान्य रूप से देरी से चल रही थी। नही नही मुझे कोई चिंता नही हुई क्योंकि मेरी कक्षा तो दोपहर १ बजे शुरू होनी थी। इंतज़ार के समय गुलाम अली साहब की एक ग़ज़ल समय काटने का सबसे उत्तम जरिया है अतः मैंने अपने फ़ोन पर ग़ज़ल बजानी शुरू की।
गुलाम अली साहब ने गाना शुरू किया
"चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है।" और बस बंध। क्यों? कैसे? नहीं। फ़ोन तो चार्ज था बैटरी को ऐसे खत्म नहीं होना चाहिए। आख़िर कल पुरी रात चार्ज की गई है। शायद मैं बटन चालु करना भूल गया था, मगर नहीं अमेरिका में तो बटन होते ही नहीं हैं। भगवान् न करे की मेरा फ़ोन ख़राब हुआ हो। यहाँ तो कुछ जुगाड़ भी नहीं होता अच्छा खासा खर्च हो जाता है ऐसी छोटी छोटी चीज़ों पर। चलिए कम से कम तभी रेलगाड़ी आ पहुँची और मैं उसमे चढा। सब कुछ फ़िर से सामान्य हो रहा था, या शायद मैं तो यही मान रहा था। कुछ ही स्टेशन जाने के बाद एक महिला की कर्णप्रिय आवाज़ सुनाई दी, पहले तो मुझे लगा की ये आकाशवाणी है मगर मेरे लिए आकाशवाणी तो हिन्दी में होती, यह तो अन्ग्रेज़ी में थी। अरे नहीं, यह आकाशवाणी नहीं मगर परिचालिका की आवाज थी की कृपया अपना समान ध्यान से उठाकर अगले स्टेशन पर गाड़ी बदल ले क्योंकि यह गाड़ी मरम्मत हेतु आगे नहीं जायेगी। यह कुछ नया नहीं था साल में एक दो बार तो ऐसा होता ही रहता है। यह सिर्फ़ एक बुरा संयोग था की ऐसा सब आज हो रहा है। मैं हर कदम फूंक फूंक कर रख रहा था एवं हर संभावित बुरे तजुर्बे के लिए पुरे मन मस्तिष्क से तैयार था। मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं। दोपहर का खाना हालाँकि मुझे छोड़ना पड़ा क्योंकि मुझे कक्षा के लिए देरी हो रही थी। फ़िर मैं प्रयोगशाला से सीधा कक्षा में गया, मैं सोचा रहा था की आज सब लोग इतने एकाग्र क्यों दिख रहे हैं? यहाँ तक की हमेशा पिछली कतार में बैठने वाला वो मोटा सा लड़का भी आज समय पर पहुँच चुका था। क्या? मगर मुझे कैसे नहीं पता चला की आज परीक्षा थी, अजी तैयारी तो छोडिये मैंने तो एक बार कुछ पढ़ा भी नहीं था। अच्छी बात यह थी की परिणाम आज ही नहीं आने वाला था, इसलिए चिंता थोडी कम हुई।

मेरा मित्र वर्ग काफ़ी छोटा है मगर ये छोटा सिर्फ़ इसलिए है की ये सर्वोत्तम है। दिन में कम से कम एक काम अच्छा हो इस लिए मैंने अपने एक मित्र को घर पर आने का न्योता देना उचित समझा। ओह, फ़ोन तो बंध था अतः सार्वजनिक फ़ोन का उपयोग करना पड़ा। मुझे ३ सिक्के प्रयोग करने पड़े क्योंकि मेरे मित्र को लगा की कुछ संगीन बात है अन्यथा मैं उसे सार्वजनिक फ़ोन से फ़ोन क्यों करता। मगर मेरे समझाने पर वो मान गया और मुझसे वादा किया की वो जरुर आएगा। मैं चीनी खरीदकर घर पहुँचा तो मेरे साथ मेरे घर में किराया बांटने वाले मित्र ने मुझे बताया की आज उसका दिन बड़ा ख़राब था। मुझे काफ़ी ख़राब लगा जब ये सुन कर मुझे हँसी आ गई थी और वो जरा नाराज़ हो गया था। खैर उसने मुझे बताया की उसका दूध आज समाप्त हो गया था इसलिए उसने मेरा दूध इस्तेमाल किया था, हलाँकि वो मुझे फ़ोन करके बताने की कोशिश कर रहा था मगर मेरा फ़ोन नहीं लगा। इसका अर्थ तो आप निकाल ही सकते हैं. चीनी खरीदना बेमानी हो गया था। चलिए चाय में केफीन होता है ये तो आप जानते ही हैं। अतः मैंने उसे कहा की मेरी वस्तुओं को वो हमेशा अपनी समझ कर इस्तेमाल में ला सकता है। उसके चेहरे पर यह सुनकर गर्व के भाव थे, हमारी मित्रता के लिए उन भावों ने मुझे भी भाव विभोर कर दिया।

वैसे मेरे बस्ते में अब छत्री नहीं थी, मगर हम ये मान लेते हैं की मैं उसे अपनी कंप्यूटर की प्रयोगशाला में भूल कर आया हूँ और कल जाकर उसे ले लूँगा। तब मैंने अपना फ़ोन चार्ज करने रखा तो पता चला की सिर्फ़ बैटरी ही खत्म थी। मेरा फ़ोन पुनः इस्तेमाल करने के लायक हो गया था। एक खुशी की लहर से मेरे रोंगटे खड़े हो गए. मैंने फ़िर से अपने मित्र को फ़ोन कर के पूछा की वो कितने बजे आएगा, तो उसने कहा की उसे आते आते देर शाम हो जाएगी और उसके बाद वो मुझे एक क्लब में लेकर जायेगा। उसने मुझसे २ व्यक्तियों का आरक्षण करने को कहा और मैंने भी यह सोचकर मना नहीं किया की नाचने से पसीने के साथ साथ सारा बुरा प्रभाव मेरी कुंडली से निकल जायेगा।

कुछ और बुरे अनुभव मुझे हुए मगर वो काबिल-ऐ-बयान नहीं है तो हम आगे बढ़ते हैं। मेरा मित्र अपनी कार लेकर आया था, मैंने पहला सवाल उससे यही किया की कार में पेट्रोल तो है न। वो न जाने क्यों हंस दिया। शायद उसे आत्मज्ञान होना बाकी था। मगर उसे ज्ञान बांटकर उसको परेशान करने में मुझे दिलचस्पी नहीं थी इसलिए मैंने उसे पहले दूध एवं अन्य वस्तुओ की खरीदी के लिए जाने को कहा। दूकान में सब कुछ वहीँ पर वैसा का वैसा रखा था जैसे हमेशा होता है और बिना किसी अप्रिय घटना के हम खरीदी कर के बहार निकले। रात गहरी हो गई थी और क्लब के लिए समय उपयुक्त था अतः हम लोग क्लब की और निकले। यहाँ अमेरिका में सड़के अच्छी हैं और पंक्चर का नाम मैंने यहाँ कभी सुना ही नहीं है। अरे घबराइये मत ऐसा कुछ हुआ भी नहीं। सिर्फ़ जब हम क्लब पहुंचे तो पता चला की वहाँ किसी सज्जन ने पुरा क्लब अपने निजी मौजो आराम हेतु बुक किया हुआ है और बाकी सारे आरक्षण स्थगित कर दिए गए हैं। अच्छा होता अगर मैंने अपने मित्र को आज के बारे में पहले बता दिया होता। शायद उसे इतना ख़राब नहीं लगता क्योंकि वो भी तब मेरी तरह ऐसी ही कुछ अपेक्षा कर रहा होता। बुझे हुए दिल के साथ हम लोग मेरे घर पर आए। अब चाय के लिए सब कुछ था, पत्ती चीनी दूध अदरक लॉन्ग इलाइची सब कुछ। हाहा। हाहा। किस्मत को ठेंगा दिखाकर मैंने फ़िर से पानी चूल्हे पर उबलने रख दिया। अदरक और लॉन्ग इलाइची कूट कर उसमे डाल दी, पत्ती उबल कर वही चित परिचित सुगंध देने लगी। चीनी थोडी ज्यादा डाल दी क्योंकि आज वैसे भी और दिनों की तुलना में कम ही मीठा खाया था मैंने। दूध डालने के बाद जो हल्का लाल और भूरा सा रंग चाय में आता है उसे देख करआप यह कह सकते हैं की मेहनत का रंग होता है और वो बिल्कुल चाय के रंग से मिलता है। मगर आज चाय में कुछ और भी है। ये चाय में सब चीज़ें अलग अलग क्यों नजर आ रही है? हे राम! भला ठंडी के मौसम में १-२ घंटे अगर आपने दूध गाड़ी में रखा है तो उस की वजह से दूध फट तो नहीं जाना चाहिए। खैरफट गया है तो कोई बात नहीं। दिनेश किस्मत से लोहा लेना जानता है, आज मेरा दोस्त पनीर की सब्जी खाकर जायेगा। मैंने पुरे ३.७८ लीटर दूध का पनीर बनाया। काफ़ी पनीर था दो लोगों के लिए। जो सब्जी आज मैंने बनायी है वो अब तक की सारी सब्जियों से स्वादिष्ट है। ऐसा कैसे हो सकता है? नहीं ये सम्भव नहीं है। ऐसा होना तो लिखा नहीं था। अगर हम ये भी मान ले की ये मेरे मित्र के बढ़िया नसीब का नतीजा है तो फ़िर जरा ये बताएं की हमें क्लब में जाने क्यों नहीं दिया गया। मैंने पुष्टि करने के लिए भारत फ़ोन लगाया और एक मित्र से बिना किसी असुविधा के बात हो गई। असंभव। मेरे रूम मेट ने आकर कहा की वो भी दूध ले कर आया था और मैं उसका दूध इस्तेमाल कर सकता हूँ। मुझे लगा मैं सो चुका हूँ और सपना देख रहा हूँ। मैंने अपने आप को चूंटी काट कर देखा तो पता चला की यह सपना नहीं हकीकत है हालाँकि चूंटी से ज्यादा दर्द भी नहीं हुआ था। मैं ऑरकुट खोला तो मेरी एक महिला मित्र ने लिखा था की मेरा फोटो बड़ा बढ़िया है। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था तभी मेरे मित्र ने कहा की उसे घर जाना है। मैंने उसे कुछ देर बैठने को आमंत्रित किया तब मुझे ये राज़ समझ में आया। समय हो रहा था १२:३० और दिन बदल चुका था। शायद आज सपने भी मीठे आयेंगे इसलिए मैं सोने जाता हूँ।
इस रचना को पढने के लिए आपका धन्यवाद।

आप भारी
दिनेश अग्रवाल

1 comment:

ŠĦÅŠĦWÃT said...

vaakai mein, doodh fatne pe wo roota hai jo paneer banana nahi jaanta...aapne ise charitaarth kar diya